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उससे पूछो

जया जादवानी

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14595
आईएसबीएन :9788181436757

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"सच्चाई की गूंज : जया जादवानी की कहानियों में छुपे चेहरों का उद्घाटन"

विराट को गाती कहानियाँ

व्यक्ति और समाज जीवन के छद्म में आकंठ डूबा है। फिर भी हर शख्स को किन्हीं क्षणों में अपने वास्तविक चेहरे के साथ प्रकट होना ही पड़ता है। जया जादवानी की कहानियाँ इन क्षणों की दुर्लभ कौंध को लगातार नयी और लम्बी उम्र देती हैं। कथाकार रचना के साथ टहलती हुए अपने वजूद की तलाशी सबसे पहले ले लेती है। उसका बहिर्जगत कभी उसके विकासमान अन्तर्जगत की अनदेखी नहीं करता। उसके सत्य कुरूपता और सौन्दर्य के पार हैं। वहाँ विराट का गान चलता और फलता है। ज़मीन यहाँ आकाश से अभिन्न है। यहाँ एक ऐसी अछूती पाठकीयता की दरकार है जो अपनी आँख से देखना और अपनी धड़कन में जीना जानती है।

इन कहानियों में ऐसी बेफ़िक्रियाँ हैं, जो उमंगों में भी और संजीदगियों में भी स्वयं को सतत देखती-माँजती है। चूक पर अचूक साक्ष्य! यहाँ तक कि अपनी अस्मिता को भोगते, बाँटते या सहेजते हुए भी अपने लगाव-अलगाव की गवाही। अपने अस्तित्व के कोने-कोने से साक्षात्कार। गहरा रचाव भी, सजग बचाव भी। मृत्यु की ही भाँति जीवन भी स्थगित नहीं हो सकता। इन कहानियों से गुज़रते हुए स्थापित अवधारणाओं की आहुतियाँ देने का साहस जगता है। एक सलोने एडवेंचर का सफा खुलता है। स्याही रौशनाई हो उठती है।

‘उससे पूछो’ स्त्री और पुरुष के नैसर्गिक यिन और यांग की चैतन्य कथा है। वहाँ द्वार बन्द नहीं होते, न ही बेअदब प्रवेश है। कहीं अधिपत नहीं रोपना है, इसलिए अपने और दूसरों के अँधेरों और चकाचौंधों की ख़बर ली जा सकती है। दो छोरों के ठीक मध्य में आकर दुख नहीं है, तो ब्लिस भी नहीं। अनकहा है। ‘आर्मीनिया की गुफा’ जैसी अनेक कहानियाँ नारीत्व की खिलावट को कुचल डालनेवाली प्रतिष्ठित क्रूरता का प्रतीक कथा कहती हैं। ‘ये रास्ता कहाँ जाता है’ जैसी कहानियाँ उस मृतप्राय धर्म की चौकस रिपोर्टिंग करती हैं जो आत्महन्ताओं से फलता है। जहाँ कथाकार को अपने तल की कुछ नजदीकियाँ मिली हैं, वहाँ उसने ग़जब ढाये हैं। नर-नारी के मुक्त संवादों और नैसर्गिक स्थितियों में यह करिश्माई विज़डम कालित और विदग्धी भाषा के संग खिली है। भेड़चाल में लिप्त समाज में से गुज़रते हुए उसे अतिरिक्त मशक़्क़त भी करनी पड़ी है और अपने बयान का अवसान भी सहमा पड़ा है।

अधिकांश कहानियाँ ख़ानाबदोशी करके कथाकार के साथ लौटती हैं। प्रेम और समर्पण यहाँ मारक तो हो सकता है, आरक्षित नहीं। जिस को वो जितना चाहिए, उतना छू जाता है। कथ्य को सहसा ख़ाली होना है, लेकिन पहले से भी सुन्दर भराव के लिए और फिर से लबालब रिक्ति के लिए। कहानी की निर्भयता अक्सर चट्टान हो जाती है, इसलिए लगातार एक अहंकार से निबटना होता है उसे।

जया के अहम किरदार उनके अपने विकासमान फलसफों और मुक्त यात्राओं के प्रवक्ता हैं। उनकी कविता की भी भाँति उनकी कहानी जब जीवन के जंगल को देखती है तो जंगल भी उसे देखता है। सब आर-पार होता है। वह दोनों को देखते हुए देखती है। फिर चुपके से बाहर होकर ख़ुद के साथ उन सबको वहाँ छोड़ आती है। उसके जाने के बाद के पतझड़ में हर पत्ते पर किसी नयी कहानी का शीर्षक पढ़ा है राहगीरों ने। जया की नायिका इतनी अज्ञात है कि मुसव्विर सिटपिटा जायें। इस राज़ को कोई साज़ नहीं गा सकता। रचना और होती क्या है।

– सैन्नी अशेष

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